Friday , 8 November 2024
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रीवा राज्य के महाराजा को कत्ल की सजा ब्रिटिश हुकूमत ने किया राज्य से बाहर, फिर किसे मिली गद्दी जानिए – Rewa News

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Rewa News: क्या आपने सुना है कि किसी राजा महाराजा को हत्या की सजा मिली हो? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस महाराजा के पास प्रजा की कोई कमी नहीं थी और देश-दुनिया में उनका सम्मान था, उसे हत्या के आरोप में राज्य से निकाल दिया गया था। गुलाब सिंह इंदौर में पढ़ाई कर रहे थे। असिस्टेंट गवर्नर जनरल ने उन्हें रीवा बुलाकर महाराज घोषित कर दिया। उनके नाबालिग होने के कारण रीजेंसी हुई और उनके मामा रतलाम राजा सज्जन सिंह को रीजेंट नियुक्त किया गया। जब गुलाब सिंह मालिक बने तो 31 अक्टूबर को और 23 अक्टूबर को ब्रिटिश इंडिया के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड रीडिंग ने उन्हें रीवा स्टेट का प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया

उस दिन से रीवा में गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी रहा। 9 अगस्त को लाल मर्दन सिंह और राजमणि प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया। राज्य में महात्मा गांधी के कार्यक्रम चलाए जाने के बहाने महाराज गुप्त रूप से क्रांतिकारियों की मदद कर रहे थे। इससे अंग्रेज शासक महाराज से काफी नाराज थे। उन पर एक हत्या में सहयोगी होने का आरोप लगाकर राज्य से निष्कासित करने का आदेश दिया गया था।

भारत की ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रीवा राज्य का प्रशासक जरूर नियुक्त किया था। 1942 से 1946 के बीच ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें अपमानित करने की कोशिश की। महाराज को वापस लाने के लिए आंदोलन चलाया जा रहा था। इसकी शुरुआत 18 फरवरी 1942 को हुई। महाराज की गिरफ्तारी के विरोध में वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं समेत सैकड़ों लोग सेंट्रल जेल रीवा और अन्य शहरों में बंद थे महाराज गुलाब सिंह में इतना आत्मविश्वास और सत्याग्रह की भावना थी कि ब्रिटिश सरकार उन पर लगे आरोपों को सिद्ध नहीं कर सकी।

वे ब्रिटिश सरकार से संघर्ष करते हुए 30 जनवरी 1946 तक मध्य भारत एजेंसी की सबसे बड़ी रियासत रीवा के शासक बने रहे। परिणाम स्वरूप 31 जनवरी 1946 को उनसे प्रशासनिक अधिकार छीनकर महाराज मार्तण्ड सिंह को सौंप दिए गए जिससे गुलाब सिंह को रियासत छोड़कर अन्यत्र जाने का आदेश प्रसारित हो गया। 6 फरवरी 1946 को मार्तण्ड सिंह रीवा की गद्दी पर बैठे और महाराज गुलाब सिंह रीवा की गलियां छोड़कर मुम्बई चले गए। इस तरह रविवार को कर्ज को बोझ बनते देख महाराज गुलाब सिंह 13 अप्रैल 1950 को संसार सागर से प्रस्थान कर गए।

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