Rewa Today Desk : भारत में परिवहन के क्षेत्र में स्कूटर का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल एक वाहन है, बल्कि भारत के मध्यवर्गीय परिवारों की पहचान भी है। स्कूटर का उपयोग रोजमर्रा की जिंदगी को आसान बनाने के लिए होता है। चाहे दफ्तर जाना हो, बच्चों को स्कूल छोड़ना हो या बाजार का काम हो, स्कूटर ने भारतीय परिवहन को एक नया आयाम दिया है। इस लेख में, हम भारत में स्कूटर के इतिहास, विकास, लोकप्रियता और इसके सामाजिक प्रभाव पर चर्चा करेंगे।
स्कूटर का इतिहास: कैसे शुरू हुआ सफर?
स्कूटर की शुरुआत भारत में 1950 के दशक में हुई, जब इटली की मशहूर कंपनी “वेस्पा” और “लैम्ब्रेटा” ने भारत में अपने मॉडल पेश किए। उन दिनों स्कूटर अमीर और संपन्न लोगों के लिए एक स्टाइलिश वाहन माना जाता था।
1960 और 1970 के दशक में, भारत में घरेलू कंपनियों जैसे बजाज ऑटो ने स्कूटर निर्माण में कदम रखा। बजाज चेतक, जो वेस्पा के लाइसेंस पर आधारित था, भारतीय परिवारों की पहली पसंद बन गया। इसने “हमारा बजाज” जैसे नारे के साथ न केवल भारतीय सड़कों पर राज किया, बल्कि लोगों के दिलों में भी जगह बनाई।
1980 और 1990 का दशक: स्कूटर का सुनहरा युग
1980 और 1990 का दशक स्कूटर का सुनहरा युग माना जाता है। यह वह समय था जब स्कूटर हर परिवार के लिए एक आवश्यकता बन चुका था। बजाज चेतक, बजाज सुपर और प्रिया जैसे मॉडल्स आम आदमी के लिए उपलब्ध थे। इनका रखरखाव आसान और खर्चा कम था।
इस समय, स्कूटर केवल एक वाहन नहीं, बल्कि परिवार की जीवनशैली का हिस्सा बन चुका था। इसे शादियों में तोहफे के रूप में दिया जाता था। एक स्कूटर का मालिक होना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था।
स्कूटर का पतन और मोटरसाइकिल का उदय
1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में, स्कूटर की लोकप्रियता में गिरावट आई। इसका मुख्य कारण मोटरसाइकिल का बढ़ता प्रचलन था। मोटरसाइकिल, जो स्कूटर के मुकाबले तेज, ईंधन-किफायती और आधुनिक डिजाइन के साथ आई, ने युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया।
बजाज ऑटो, जो स्कूटर उद्योग का राजा था, ने धीरे-धीरे स्कूटर निर्माण को बंद कर दिया और मोटरसाइकिल निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। यही समय था जब स्कूटर भारतीय सड़कों से गायब होने लगा।
2000 के दशक का पुनर्जन्म: गियरलेस स्कूटर की एंट्री
2000 के दशक में स्कूटर ने फिर से भारतीय बाजार में वापसी की। इस बार गियरलेस स्कूटर ने लोगों का ध्यान खींचा। होंडा एक्टिवा, जो 2001 में लॉन्च हुआ, ने स्कूटर उद्योग को फिर से जिंदा किया।
होंडा एक्टिवा ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अपनी सादगी, उपयोगिता और भरोसेमंद प्रदर्शन के कारण बड़ी लोकप्रियता हासिल की। यह हर आयु वर्ग के लोगों के लिए सुविधाजनक साबित हुआ, खासकर महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए।
इसके बाद टीवीएस जुपिटर, सुजुकी एक्सेस, हीरो मेस्ट्रो और यामाहा फसिनो जैसे गियरलेस स्कूटरों ने बाजार में अपनी जगह बनाई। ये स्कूटर ईंधन-किफायती, हल्के और चलाने में आसान थे, जिससे इन्हें बड़े शहरों में भी लोकप्रियता मिली।
स्कूटर और महिला सशक्तिकरण
गियरलेस स्कूटर ने महिलाओं को स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम दिया। जहां पहले महिलाएं परिवहन के लिए दूसरों पर निर्भर रहती थीं, वहीं अब वे स्कूटर का इस्तेमाल कर अपनी जरूरतें पूरी कर सकती हैं।
स्कूटर ने खासकर छोटे शहरों और गांवों में महिलाओं को नौकरी, शिक्षा और अन्य अवसरों तक पहुंचने में मदद की। यह कहना गलत नहीं होगा कि स्कूटर ने महिलाओं को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
इलेक्ट्रिक स्कूटर: भविष्य की ओर एक कदम
आज, जब दुनिया पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बढ़ रही है, इलेक्ट्रिक स्कूटर भारतीय बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं। ओला, एथर, हीरो इलेक्ट्रिक और बजाज चेतक इलेक्ट्रिक जैसे ब्रांड्स ने इस सेगमेंट में कदम रखा है।
इलेक्ट्रिक स्कूटर, जो प्रदूषण मुक्त और कम लागत वाले हैं, आने वाले समय में भारतीय बाजार पर हावी हो सकते हैं। सरकार की “फेम इंडिया योजना” (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles) ने इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ग्रामीण और शहरी भारत में स्कूटर की भूमिका
भारत में स्कूटर न केवल शहरी परिवहन का माध्यम है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी एक अहम भूमिका निभा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां सार्वजनिक परिवहन की सुविधा कम है, स्कूटर ने लोगों की आवाजाही को आसान बनाया है।
शहरों में, स्कूटर ट्रैफिक में आसानी से चलने और पार्किंग की सुविधा के कारण पसंद किया जाता है। यह पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के बावजूद एक किफायती विकल्प बना हुआ है।
स्कूटर का सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
स्कूटर केवल एक वाहन नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा बन चुका है। बॉलीवुड फिल्मों में स्कूटर को कई बार मुख्य किरदारों के साथ दिखाया गया है। “बजरंगी भाईजान” में सलमान खान का स्कूटर या “2 स्टेट्स” में अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट का स्कूटर पर सीन इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है।
इसके अलावा, स्कूटर परिवारों के बीच सामंजस्य और जुड़ाव का प्रतीक भी है। एक समय था जब पूरा परिवार एक ही स्कूटर पर सफर करता था। यह उन दिनों की याद दिलाता है जब साधन सीमित थे, लेकिन खुशियां अनंत थीं।
स्कूटर का महत्व और भविष्य
भारत में स्कूटर का सफर एक लंबे और दिलचस्प दौर से गुजरा है। यह भारतीय परिवहन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। चाहे वह 1960 के दशक का बजाज चेतक हो या 2020 के दशक का ओला इलेक्ट्रिक, स्कूटर ने हमेशा भारतीयों की जरूरतों को समझा और उन्हें पूरा किया।
भविष्य में, जब इलेक्ट्रिक वाहनों का दौर शुरू होगा, स्कूटर एक बार फिर से नई ऊंचाइयों को छू सकता है। तकनीक और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाते हुए, स्कूटर भारत के हर वर्ग के लिए परिवहन का एक आदर्श विकल्प बना रहेगा।
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