Rewa Today Desk :पूरी दुनिया में आज जितने भी सफेद शेर हैं, वह सब मोहन के वंशज हैं, जी हां मोहन उसे शेर का नाम था जिसे आज से 72 साल पहले उसे समय के रीवा महाराजा मार्तंड सिंह ने सीधी के जंगल से पकड़ा था. मोहन को 27 में 1951 को सीधी जिले के बरगढ़ी के जंगल में पकड़ा गया था. दुनिया भर में आज जितने भी सफेद बाघ हैं वह इसी बाघ मोहन की संतान है, मोहन को इस दुनिया से गए ,आज पूरे 58 साल हो गए.

शिकार के दौरान पकड़ा गया था मोहन किसी जमाने में शिकार की प्रथा आम थी, जोधपुर महाराज अजीत सिंह रीवा आए हुए थे. तत्कालीन महाराज मार्तंड सिंह ने उनके साथ शिकार का प्लान बनाया और पहुंच गए सीधी के जंगलों में. वहां उन्होंने कैंप लगाया, हॉके का हुक्म हुआ, एक बाघिन अपने तीन बच्चों के साथ नजर आई, महाराज ने बाघिन और दो बच्चों को तो मार दिया, तीसरा बच्चा उनको अद्भुत लगा, उसको पकड़ने का फरमान जारी कर दिया गया, बाघिन का तीसरा सावक काफी छोटा था. वह वहीं पास की एक गुफा में जा छिपा. बडी मुश्किलें से शावक को पकड़कर महाराज के सामने पेश किया गया. अदभुत आश्चर्यजनक किंतु सत्य. सफेद बाघ को महाराज मार्तंड सिंह अपने सामने पाकर आश्चर्यचकित रह गए .बाघ के बच्चे को गोविंदगढ़ के किले के एक हिस्से में लाकर रखा गया. यहीं पर उसका लालन-पालन प्रारंभ किया गया. बदलते वक्त के साथ मोहन बड़ा हो गया.

वर्तमान महाराज पुष्पराज सिंह के अनुसार वर्तमान महाराज पुष्पराज सिंह यादो के झरोखे में खो कर बताते हैं, उनके पिता महाराजा मार्तंड सिंह ने मोहन को गोविंदगढ़ के किले में रखा. मोहन के साथ अलग-अलग समय में तीन बाघिन को रखा गया जिनके नाम थे बेगम, राधा, और सुकेसी. इन तीन बाघिनों से मोहन की कुल 34 संतान हुई. जिसमें से 21 सफेद थी, यह अपने आप में बेहद रोमांचित करने वाली बात थी, उस जमाने में इस तरीके का कारनामा करना वन प्राणियों को बेहद करीब से जानने वाला व्यक्ति ही कर सकता था. अगर यह कहा जाए आज के आधुनिक दौर में इस तरीके का व्यक्ति नहीं है, तो कोई गलत नहीं होगा, इसके तार्किक कारण भी हैं. जिसकी हम आगे बात करेंगे . मोहन और बेगम के 7 बच्चों,राधा ने सर्वाधिक 14 और सुकेसी ने 13 बच्चों को जन्म दिया. मोहन की पहली सफेद शेर के रूप में 30 अक्टूबर 1958 को मोहन और राधा के बच्चों के रूप में मोहिनी, सुकेसी, राजा और रानी पैदा हुए थे. मोहन की अंतिम संतान मोहन और सुकेसी के बच्चों के रूप में 6 सितंबर 1967 को चमेली और 17 नवंबर 1967 को विराट के रूप में थी. तत्कालीन महाराजा मार्तंड सिंह ने चमेली को दिल्ली के चिड़ियाघर में दे दिया था. वहीं विराट की मौत 8 जुलाई 1976 को गोविंदगढ़ के किले में हो गई थी. सफेद शेर से नाता जोड़ने के लिए रीवा में बनाई गई व्हाइट टाइगर सफारी. मोहन की मौत 19 दिसंबर 1958 को हुई .मोहन की मौत की खबर सुनकर महाराज कई दिन तक अपने कमरे से नहीं निकले थे. मोहन का अंतिम संस्कार पूरे राज्यकीय सम्मान के साथ हुआ था.वर्तमान में सफेद शेर से नाता जोड़ने के लिए रीवा में व्हाइट टाइगर सफारी बनाई गई, यह निश्चित किया गया सफेद शेर यहां पर एक बार फिर से जन्म लेंगे .लेकिन सफारी जिस मकसद से बनाई गई थी. उसमें अभी तक कामयाब नहीं हो पाई है. इसीलिए कहा जाता है महाराज मार्तंड सिंह वन्य प्राणियों को बेहद नजदीक से जानते थे. वह जानते थे उनका कुनबा कैसे बढ़ता है ,जो आज के वन्य प्राणी विशेषज्ञ नहीं जानते.
मोहन में कई खूबियां थी
दुनिया के पहले सफेद शेर मोहन को पकड़ने वाले महाराज मार्तंड सिंह मोहन से बेहद प्यार करते थे. वह उन्हें प्यार से मोहन जी बुलाया करते थे. मोहन की मौत के बाद पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया था. महाराजा कई दिनों तक अपने कमरे से नहीं निकले थे .वह बेहद दुखी थे. महाराजा मार्तंड सिंह का काफी समय मोहन के साथ बीतता था. वह उनके साथ फुटबॉल नुमा गेंद के साथ खेला भी करते थे. महाराजा ऊंचाई पर होते थे. कई बार तो वह मोहन के बेहद करीब भी चले गए. मोहन रविवार को मांस नहीं खाया करते थे. उन्हें रविवार को दूध दिया जाता था. आज मोहन को गए इस दुनिया से 58 साल हो गए लेकिन लगता है यह कल की ही बात है.
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