Rewa Today Desk :अमर शहीद लाल पदमधर सिंह विंध्य प्रदेश के महान सपूत आज ही के दिन आज से 81 साल पहले 12 अगस्त 1942 को देश की आजादी की लड़ाई लड़ते हुए इलाहाबाद में शहीद हुए थे इलाहाबाद मैं एक हाथ में तिरंगा साथियों के साथ देशभक्ति के तराने अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लगाते अपने साथियों के साथ प्रभात फेरी निकालते हुए देश के लिए शहीद हुए थे। ऐसे पदमधर सिंह को रीवा की धरती पर याद किया गया
विंध्य की धरती वीर सपूतों से भरी हुई है विंध्य का क्या है इतिहास विन्ध्य की धारा आदिकाल से ही रत्नगर्भा के रूप में जानी जाती रही है। यह भू-भाग ऐतिहासिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिदृश्य में चरमोत्कर्ष पर रहा है। जब भारत माता का आंचल आक्रान्ताओं से आकान्त हुआ तो यहाँ के रणवांकुरों ने प्राणों का उत्सर्ग करने में पीछे नहीं रहे। एक लंबी चौड़ी फेहरिस्त है देश के आजादी के शहीदों की आजादी के मतवालों की जैसे ठाकुर रणमत सिंह, श्यामशाह, पद्मधर सिंह, त्रिभुवनदास चिन्ताली, सम्पति दादा जैसे नाम के साथ ढेरों अनाम सेनानियों ने अपने लहू से अभिसिंचित कर अपनी मातृभूमि रक्षा की। आज 12 अगस्त आज बात 12 अगस्त 1942 को शहीद हुए पदमधर सिंह की आज हम बात करेंगे विन्ध्य की माटी के सपूत अमर शहीद लाल पद्मधर सिंह कि उनके कुछ अनछुयें पहलुओं को छूने का प्रयास करेंगे ।
हम आपको बताते हैं लाल पद्मधर सिंह कौन थे विंध्य के अमर शहीद लाल पद्मधर सिंह की गौरव गाथा अद्वितीय है। कम ही ऐसे मतवाले हैं अपनी धरती पर मर मिटने वाले पद्मधर सिंह की तरह इतिहास में जल्दी दूसरा नाम आपको नहीं मिलेगा वे किशोरावस्था से ही राष्ट्र प्रेम के रंग में रंगे हुए थे रंग दे बसंती चोला उनकी रग-रग में बसा था । पदमधर सिंह के हर धड़कन देश के नाम – थी। वे भारत माता की कोख को धन्य कर अमर हो गये महज 29 वर्ष की उम्र में। जब भी भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास का जिक्र होगा उसमें पदमधर सिंह की बात ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। भारत की आजादी की लड़ाई में बघेलखंड के इलाके सतना के कृपालपुर घराना का अपना अलग ही महत्व है। सन 1857 की क्रांति में लाल धीर सिंह बघेल और 1942 कि अगस्त क्रांति में 12 अगस्त को अंग्रेजो के खिलाफ लाल पदमधर सिंह बघेल की शहादत को देश कभी नहीं भूलेगा। अगस्त क्रांति के महानायक शहीद पदमधर सिंह का जन्म 14 अक्टूबर 1913 को कृपालपुर गढ़ी सतना में हुआ था। सन 1939 में इन्होंने दरबार इंटर कॉलेज रीवा में प्रवेश लिया जिसका अब नाम कर दिया गया है ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय। पद्मधर सिंह ने सन 1941 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। आ गया 11 अगस्त 1942 प्रयाग विश्वविद्यालय के सामने छात्रों ने एक आम सभा की जिसमें निश्चित किया गया कि छात्र देश की आजादी के लिए लड़ेंगे महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेंगे। अगले दिन 12 अगस्त को विश्वविद्यालय का छात्र समुदाय इंकलाब जिंदाबाद भारत आजाद हो के नारा लगाता हुआ इलाहाबाद कचहरी की ओर बढ़ रहा था। कलेक्टर डिक्सन और एसपी आगा सशस्त्र बल के साथ विद्यार्थियों के आन्दोलन को रोकने के लिए खड़े थे जुलूस आगे बढ़ रहा था जब छात्र नहीं हटे तो कलेक्टर डिक्सन ने लाठीचार्ज का आदेश दिया। फिर भी छात्र आगे बढ़ते रहे। कलेक्टर डिक्सन ने फायर का आदेश दे दिया फायर सुनते ही जुलूस में मौजूद सभी छात्र जमीन में लेट गए शिवा एक नवयुवक के जिसके हाथ में तिरंगा था । डिक्सन ने एक बार फिर आदेश दिया फायर मार दो अकेला है। इतना सुनते ही रीवा का शेर पदमधर सिंह दहाड़ उठा कि वह अकेला नहीं है पूरा भारत उसके साथ है देश के युवा उसके साथ हैं और तत्काल पदमधर सिंह ने तिरंगा हाथ में लेकर इंकलाब जिंदाबाद भारत आजाद हो का नारा लगाया। पुलिस अधीक्षक आगा ने उसी समय पदमधर सिंह के सीने पर गोली मार दी। पदमधर सिंह गिर पड़े लेकिन राष्ट्रीय ध्वज उनके दाएं हाथ पर था और जब तक उनमें जान थी उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज को गिरने नहीं दिया।



याद किए गए पदमधर सिंह रीवा के टीआरएस कॉलेज में जहां पर पद्मघर सिंह पढ़ा करते थे उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है कॉलेज की प्राचार्य छात्रों और शिक्षकों ने पद्मधर सिंह को याद किया देश के लिए मर मिटने की बातें कहीं।
यह आर्टिकल डॉक्टर अखिलेश शुक्ला प्रोफेसर टीआरएस कॉलेज जहां पर पद्मधर सिंह 1939 में पढ़ा करते थे डॉक्टर अखिलेश भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित पंत तथा भारतेंदु हरिश्चंद्र अवार्ड से सम्मानित प्राध्यापक हैं पंत पुरस्कार उन्हें कई बार मिल चुका है वर्तमान में टीआरएस कॉलेज में समाजशास्त्र शास्त्र पढ़ते हैं उनसे बातचीत के आधार पर इस लेख को लिखा गया है



















































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