Rewa Today Desk :राजस्थान के मतदाताओं ने नई विधानसभा के लिए अपने जनप्रतिनिधियों के भाग्य का फैसला ईवीएम के हवाले कर दिया है।यानी यानी 199 सीटों पर 1875 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई।ये बड़ा सवाल है कि इस बार रिवाज बदलेगा या फिर परम्परा कायम रहेगी?शूरवीरों की धरती में परम्पराएं गढ़ी जाती और तोड़ी जाती रहीं हैं।
लेकिन राजनीतिक मैदान में राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकार बदल जाती है। एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा। वर्तमान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है।पांच साल पहले वसुंधरा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी।इस बार साल 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा राजस्थान में सरकार बदलने की परंपरा को कायम रखना चाहती है।वहीं, कांग्रेस इस परंपरा को तोड़ने के इरादे से चुनाव मैदान में उतरी है।दरअसल, साल 1951 से लेकर 2018 तक राजस्थान में 24 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं।जबकि पिछले पांच विधानसभा चुनाव से राजस्थान में हर बार सरकार बदली है।यह सिलसिला साल 1993 में राष्ट्रपति शासन के बाद लागू हुआ था,जो अभी भी जारी है।इसी लिए राजनीतिक हलकों में ये सवाल गूंज रहा है कि राजस्थान के मतदाता इस बार अपने रिवाज को कायम रखेंगे या फिर ढ़ाई दशक पुरानी परम्परा को तोड़ देंगे।ये सवाल इस लिए भी उठा है कि हर बार राजस्थान में चुनाव यानी मतदान के महीनों पहले हवा का रूख साफ दिख जाता था,लेकिन इस बार मतदाताओं के मौन ने राजनीतिक दलों खास कर भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। यही वजह है कि प्रचार की शुरुआत में केंद्र की उपलब्धियों और भाजपा शासित राज्यों की योजनाओं को आगे कर मतदाताओं के बीच जाने वाली भाजपा ने प्रचार के अंतिम चरण में अपना रुख बदल लिया।राजस्थान की चुनावी फिंज़ा में कन्हैयालाल और योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर राज्य तेज़ी से गूंजने लगा।ये कहने में कोई हर्ज नहीं है कि इस बार राजस्थान चुनाव में अशोक गहलोत सरकार के विकास और भारतीय जनता पार्टी के बदलाव के बीच कड़ी टक्कर है.
तराजू का पड़ला मामूली अंतर से किसी भी तरफ झुक सकता है कांग्रेस एक बार फिर से अशोक गहलोत के चेहरे पर मैदान में है।लेकिन भाजपा ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह यहां भी किसी राज्य स्तरीय नेता यानी वसुंधरा राजे सिंधिया जैसों को आगे नहीं किया है।ये बात अलग है इसमें जयपुर राजघराने की दिया कुमारी और राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसे सांसदों को मैदान में उतार कर एक अलग संदेश देने की कोशिश की है।ये साफ है कि अगर भाजपा राजस्थान के चुनावी रण में बाजी मारती है,तो उसके पीछे मोदी फैक्टर के साथ साथ धुर्वीकरण का भी असर भी होगा।धुर्वीकरण इस लिए कि आखिर में भाजपा इसी मोड पर थी।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी यहां अपने अंदाज में चुनावी सभाएं की हैं।उन्होंने जोधपुर की घटना का जिक्र और बार बार यूपी के बुलडोजर माडल को भी बीच में लाए।कांग्रेस अगर सरकार बनाती है तो वह अशोक गहलोत की महंगाई राहत योजना,आर्थिक सहायता की घोषणाओं, विभिन्न वर्गों के छात्रों के लिए जिले-जिले में हॉस्टल और महिलाओं के लिए स्मार्टफोन योजना के साथ चिरंजीवी योजना की जीत होगी।इसमें गांधी परिवार, कांग्रेस आलाकमान,प्रियंका गांधी की लोकप्रियता की कोई भूमिका नहीं होगी।बहरहाल राजनीति सम्भावनाएं का ही खेल है,इस लिए 3 दिसंबर तक तो सम्भावना ही व्यक्त की जाएगीं।
शाहिद नकवी
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