Rewa Today Desk : वाह 12 रैट-होल माइनर्स ने 24 घंटों से भी कम समय में 10 मीटर का रास्ता बनाकर कमाल किया है।इस बचाव अभियान का सबसे मुश्किल हिस्सा था,आख़िर के 10 से 12 मीटर में खुदाई करके रास्ता बनाना और इसमें अहम भूमिका निभाई ‘रैट-होल माइनर्स’ ने।दिल्ली की एक कंपनी में काम करने वाले ‘रैट-होल माइनर’ मुन्ना क़ुरैशी वो पहले वो शख़्स थे,जो बुधवार शाम सात बजकर पांच मिनट पर सुरंग के अंदर फँसे लोगों तक पहुँचे और उनका अभिवादन किया।दिल्ली की सीवर और पानी के पाइपों को साफ़ करने का काम करते हैं।

बचे हुए 12 मीटर से मलबा हटाने के लिए इन्हें सोमवार को सिलक्यारा लाया गया था।24 घंटे से भी कम समय में यह काम पूरा कर लिया,वह भी हाथ से बिना किसी मशीन केवल छोटे औजारों से।आख़िर के दो मीटर में खुदाई करने वाले एक अन्य रैट-होल माइनर फ़िरोज़ खान,मजदूरों तक पहुंचने पर अपने आंसू नहीं रोक सके।मलबे में बहुत सारी चट्टानें थीं,फिर भी रैट होल माइनर हिम्मत नहीं हारे।अंडरग्राउंड टनलिंग के एक्सपर्ट प्रवीण यादव ने भी कमाल का काम किया।उन्होंने बेहद संकरी जगह पर घंटों गैस कटर से मोटी सरिया काटी,उसे बाहर निकाला,जो काफी जोखिम भरा काम था।वह पहले भी अमोनिया से भरी जगह से चार लोगों को बचाने के अभियान में शामिल रहे हैं।

रैट-होल माइनिंग पर सन 2014 से रोक लगी थी,लेकिन उसी तकनीक ने आखिरकार 41 ज़िंदगियां बचाई।51साल के गब्बर सिंह नेगी वह शख्स हैं जिन्होंने सुरंग के भीतर अपने 40 साथियों का हौसला बनाए रखा।वह सबसे आखिर में निकले।हर वह शख्स बधाई का पात्र है जिसने इस बचाव अभियान में विपरीत परिस्थितियों में किसी न किसी रूप में अपना योगदान दिया।अर्धसैनिक बल आईटीबीपी के जवानों ने इस अभियान में अहम भूमिका निभाई है।ये भी बात साफ हो गई है कि जोखिम भरे और कड़ी मेहनत वाले काम करने में झारखंड,बिहार, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा के लोग आज भी माहिर हैं।लेकिन ये भी तय है कि अगर उत्तराखंड सरकार ने पूरी दिलचस्पी न ली होती तो ये अभियान सफल नहीं होता। बाद में सरकार ने 41 मजदूरों को एक एक लाख की आर्थिक सहायता देकर भविष्य के लिए भी उनका हौसला बढ़ाया।सरकार ने सरकार का काम किया बधाई।
- शाहिद नकवी*
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